Should Ashtakoot be matched?

Marriage is an important topic in Melapak astrology. In fact, we have no alternative to that. Apart from astrology, there is no method of Melapak available in any other system. For the native, marriage is the basis of a life-long future. There is a mistake that the whole future is shattered. So it is very important that the subject on which we are relying so much is worth believing. Research was done on 2500 birth certificates in Future Point on this subject, let's know what is the truth -

What is Guna Melapak- In traditional Hindu astrology, in the horoscope matching of the boy and the girl, the birth constellation and birth sign have been given preference in the horoscope of both. Property matching tables are used in abundance in horoscope matching of both. In Ashtakoot Milan, it is seen whether at least 18 out of 36 gunas are being found or not. If more than 27 qualities of both are found then both of them are best and this relationship will pave the way for every kind of happiness, peace, joy and prosperity in the life of the couple.

36 qualities have been allotted to the eight Guna of horoscope matching. Also each component in the match specifies a topic. This is indicated in the following table.


क्रम कूट गुण गुण
1. वर्ण 1 व्यवहार
2. वश्य 2 नियंत्रण
3. तारा 3 संपत्ति
4. योनि 4 सेक्स,संतान बाधा
5. मैत्री 5 सामंजस्य
6. गण 6 स्वभाव, प्रकृति
7. भकूट 7 दांपत्य सुख
8. नाड़ी 8 स्वास्थ्य,संतान
कुल 36

The importance of different Koot is detailed below:

1. वर्णकूट: सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के विभिन्न अंगों से चार वर्णों की उत्पत्ति हुई है: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र। ज्योतिष में भी सभी 12 राशियों को चार वर्णों में विभाजित किया गया है। वर्णकूट मिलान में वर का वर्ण सदैव कन्या के वर्ण से उत्तम होना चाहिए। यदि वर का वर्ण कन्या के वर्ण से उत्तम है तो गुण मिलान में 1 अंक प्रदान किया जाता है अन्यथा 0 अंक।

2. वश्यकूट: वश्य का अर्थ होता है नियंत्रण में रहना। इसमें देखा जाता है कि किसकी राशि किसके नियंत्रण अथवा वश में है। सभी राशियांे को पांच समूहों में वर्गीकृत किया गया हैः- चतुष्पद, द्विपद, जलचर, वनचर एवं कीटक। कीट वनचर के वश में नहीं रहता। मनुष्य वनचर को भी वश में कर लेता है। सभी चतुष्पद वनचर के वश में रहते हैं। जलचर पर वनचर का जोर नहीं चलता। अपनी राशि के साथ सभी की मित्रता होती है। इसी के अनुसार वश्य गुण मिलान किया जाता है।

3. तारा कूट: सभी नक्षत्रों को 9 श्रेणी में बांटा गया है। 1.जन्म 2. सम्पत 3. विपत 4. क्षेम 5. प्रत्यरि 6. साधक 7. वध 8. मित्र 9. अति मित्र। जन्म तारा जन्म नक्षत्र से शुरू होता है तथा क्रमशः आगे बढ़ता है। जैसा नाम से स्पष्ट है कि विपत, प्रत्यारि एवं वध तारे हर कार्य के लिए अशुभ माने जाते हैं। इस प्रकार वर की तारा से कन्या की तारा और कन्या की तारा से वर की तारा की गणना की जाती है। यदि दोनों शुभ आती है तो 3 गुण प्राप्त होते हैं। यदि एक से शुभ दूसरे
से अशुभ आती है तो 1.5 गुण प्राप्त होते हैं। इस गणना में दोनों ओर से अशुभ कभी नहीं आते, अतः कभी भी 0 गुण नहीं दिए जाते हैं।

4. योनिकूट: योनिकूट का विचार मुख्य रूप से युगल के सेक्स लाइफ की अनुकूलता की जांच के लिए किया जाता है। योनि का निर्धारण जन्म नक्षत्र के आधार पर किया जाता है। कन्या एवं वर की योनि एक ही होना सबसे आदर्श स्थिति है और 4 गुण प्राप्त होते हैं। जो पशु साथ रहते हैं लेकिन सामंजस्य नहीं होता उन्हें 2 गुण प्राप्त होते हैं। कुछ पशु एक दूसरे के शत्रु होते हैं उन्हें 1 गुण प्राप्त होता है। जो कट्टर दुश्मन होते हैं उन्हें कोई अंक प्रदान नहीं किया जाता।

5. ग्रह मैत्री: यह वर एवं वधू के चंद्र राश्याधिपतियों की आपसी मित्रता को प्रदर्शित करता है। यदि दोनों के चंद्र राश्याधिपतियों के बीच आपसी मित्रता है तो कुंडली मिलान में पूरे 5 अंक/गुण प्रदान किए जाते हैं। इसी प्रकार जैसे-जैसे मित्रता कम होती जाती है, वैसे-वैसे दोनों के बीच प्रेम में कमी आती जाएगी। परस्पर शत्रु होने पर शून्य अंक प्रदान किया जाता है।

6. गणकूट: युगल के स्वभाव, मनोदशा एवं चरित्र के निर्धारण एवं सामंजस्य के आकलन में गणकूट मिलान की अहम भूमिका है। हमारे शास्त्र में नक्षत्रानुसार तीन प्रकार के गणों की चर्चा की गई है ये हैं- देवगण, मनुष्यगण एवं राक्षस गण। यदि वर वधू के एक ही गण हों तो उत्तम मिलान माना जाता है और 6 अंक प्रदान किए जाते हैं। यदि एक का गण देव, दूसरे का गण मनुष्य हो तो भी 5 अंक प्रदान होते हैं। अन्यथा 0 अंक प्राप्त होता है।

7. भकूट: इसे राशि कूट भी कहा जाता है। मिलान शुभ होने पर पूरे 7 अंक प्राप्त होते हैं अन्यथा शून्य। वर कन्या की जन्म राशि परस्पर छठे और आठवें में हो तो भी दोष होता है। ऐसे में शून्य अंक ही प्रदान होता है। अन्य सभी मिलान में पूरे 7 अंक प्रदान किए जाते हैं। भकूट वैवाहिक सामंजस्य की परख करने हेतु कुंडली मिलान का अहम बिंदू है।

8. नाड़ी कूट: वर तथा वधू की कुंडलियों में उनके जन्म नक्षत्र के आधार पर उनकी नाड़ियों का वर्गीकरण किया जाता है। आद्य, मध्य तथा अन्त्य। इसमें वर तथा वधू की नाड़ी एक ही होने पर दोष माना जाता है। नाड़ी मिलान को सबसे अधिक आठ अंक दिए गए हैं। स्त्री तथा पुरुष की एक ही नाड़ी नहीं होनी चाहिए। इस मिलान को संतान प्राप्ति एवं स्वास्थ्य के लिए आवश्यक माना जाता है।

शोध: सभी आठ गुणों का अध्ययन करें तो गुण मेलापक बहुत ही वैज्ञानिक प्रतीत होता है। काश, यह उतना ही सटीक भी होता। 36 गुण मेलापक में माना जाता है कि अठारह गुण से अधिक मिले तो मेलापक शुभ है अन्यथा अशुभ। शोध में हमने 2500 जोड़े लिए, जिसमें आधे ऐसे थे जिनका विवाह चल रहा था और आधों का तलाक हो चुका था। उनके राशि नक्षत्रों के अनुसार जो मेलापक की स्थिति आई वह निम्न हैं।





इसमें साफ देखा जा सकता है कि जिनके 3-4 गुण भी मिले उनका विवाह भी चल रहा है और जिनके 35 गुण भी मिल गए उनका भी विवाह विच्छेद हो गया है। औसतन गुण दोनों ही ग्रुप में 21 अंक प्राप्त हुए, अर्थात शुभ या अशुभ मेलापक में कोई अंतर नहीं प्रतीत हुआ। इसके बाद यह देखने के लिए कि कोई गुण इस मेलापक को सही से दर्शाता है कि नहीं, सभी गुणों का ग्राफ अलग अलग बनाया। सभी गुणों में शून्य अंश और अधिकतम अंशों में शुभ विवाह और विवाह विच्छेद, किसी में भी कोई अंतर नहीं दिखा। ग्रह मैत्री, गण दोष, भकूट एवं नाड़ी दोष जिनको विशेष महत्व दिया जाता है उन चारों में भी शुभ अशुभ विवाह में कोई अंतर नहीं दिखा। अतः गुण मेलापक को विवाह की दीर्घता का पैमाना तो बिल्कुल नहीं माना जा सकता। दोनों के विचारों में मेलापक के लिए अवश्य मान्यता दी जा सकती है। विवाह मेलापक के लिए किस ज्योतिष सूत्र का उपयोग करें यह एक विचारणीय बिंदू ही है लेकिन अष्टकूट मेलापक के अनुसार कुछ युगलों को स्वीकार या अस्वीकार कर लेना बिल्कुल गलत ही है।

उम्मीद है उपरोक्त तथ्यों को उपयोग में लाकर एवं केवल गुण मिलापक को ही आधार न बनाकर बहुत सारी शादियों को न होने से बचाया जा सकता है और बहुतों को टूटने से।